December 16, 2024

वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल छराबड़ा का कब्जा हिमाचल सरकार को सौंपा

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नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले पर मुहर लगा दी जिसके तहत हाईकोर्ट ने ओबेरॉय होटल ग्रुप को आदेश दिए थे कि वह वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल छराबड़ा का कब्जा हिमाचल सरकार को सौंप दे। सर्वोच्च न्यायालय ने हालांकि फ्लावर हॉल होटल छराबड़ा का कब्जा सौंपने की अवधि 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दी है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में वित्तीय मामले निपटाने के लिए दोनों पक्षों को एक नामी चार्टेड अकाउंटेंट नियुक्त करने के आदेश भी दिए थे। सरकार के आवेदन का निपटारा करते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि ओबेरॉय ग्रुप आर्बिट्रेशन अवार्ड की अनुपालना तीन माह की तय समय सीमा के भीतर करने में असफल रहा। इसलिए प्रदेश सरकार होटल का कब्जा और प्रबंधन अपने हाथों में लेने के लिए पात्र हो गई है। मामले के अनुसार वर्ष 1993 में वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल में आग लग गई थी। इसे फिर से फाइव स्टार होटल के रूप में विकसित करने के लिए ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए गए थे। निविदा के तहत ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने भी भाग लिया और राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल्स के साथ साझेदारी में कार्य करने का फैसला लिया था। संयुक्त उपक्रम के तहत ज्वाइंट कंपनी मशोबरा रिजॉर्ट लिमिटेड के नाम से बनाई गई। करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था। ऐसा न करने पर कंपनी को 2 करोड़ रुपए जुर्माना प्रतिवर्ष राज्य सरकार को अदा करना था। वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन को ट्रांसफर किया। 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी कंपनी पूरी तरह होटल को उपयोग लायक नहीं बना पाई। साल 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया। सरकार के इस निर्णय को कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई। बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था। सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी। हाईकोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए आर्बिट्रेटर के पास भेजा। आर्बिट्रेटर ने वर्ष 2005 में कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया था और सरकार को संपत्ति वापस लेने का हकदार ठहराया। इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने डबलबैंच के समक्ष चुनौती दी थी। बैंच ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि मध्यस्थ की ओर से दिया गया फैसला सही और तर्कसंगत है। कंपनी के पास यह अधिकार बिल्कुल नहीं कि करार में जो फायदे की शर्तें हैं, उन्हें मंजूर करे और जिससे नुकसान हो रहा हो, उसे नजरअंदाज करें।