भारत-पाकिस्तान में तनाव के बीच शिमला समझौता रद्द करने तक पहुंची बात

शिमला : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए 2 जुलाई, 1972 को शिमला के वार्नेस कोर्ट (राजभवन) में हुआ समझौता रद्द करने तक बात पहुंच गई है। इस समझौते पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने समझौता किया था। जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ उनकी पुत्री बेनजीर भुट्टो (बाद में पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनी) भी शिमला आई थी। इस समझौते के अनुसार दोनों देश सभी विवादों और समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीके से द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करेंगे। यानी इसमें तीसरा देश मध्यस्थता नहीं कर पाएगा। दोनों देश एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में टांग नहीं अड़ाएंगे और एल.ओ.सी. का उल्लंघन नहीं करेंगे। इसके बावजूद पाकिस्तान ने वर्ष, 1999 में कारगिल युद्ध के समय समझौते का उल्लंघन किया। समझौते के अनुसार इस विषय को अंतरराष्ट्रीय पटल पर उठाने की भी मनाही है, लेकिन पाकिस्तान बार-बार इस विषयों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाता रहा है। शिमला समझौते के बाद भारत ने पाकिस्तान के 90 हजार से अधिक पाकिस्तान सैनिकों को वर्ष, 1971 के युद्ध में हार के बाद रिहा कर दिया था। उस समय भारत इस मौके का लाभ उठा सकता था, ताकि ये मौका चूक गए। कई महीने तक चलने वाली राजनीतिक-स्तर की बातचीत के बाद वर्ष, 1972 के अंत में शिमला में भारत-पाकिस्तान के बीच शिखर बैठक हुई थी। इंदिरा गांधी और भुट्टो ने अपने उच्चस्तरीय मंत्रियों और अधिकारियों के साथ उन सभी विषयों पर चर्चा की जो वर्ष, 1971 के युद्ध से उत्पन्न हुए थे। उन्होंने दोनों देशों के अन्य प्रश्नों पर भी बातचीत की। इनमें युद्ध बंदियों की अदला-बदली के अलावा पाकिस्तान की तरफ से बांग्लादेश को मान्यता देना शामिल है। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते की मेज आज भी राजभवन शिमला में पड़ी है। जब भी देश-विदेश के बड़े जनप्रतिनिधि और राजनयिक यहां आते हैं, तो वह इस मेज को जरुर निहारते हैं। इस मेज पर आज भी भारत-पाकिस्तान के झंडे लगे हैं। इस तरह से शिमला से भारत-पाकिस्तान की कई यादें जुड़ी है।