हिमालयन संस्कृति विकास एवं शोध संस्थान शिमला की ओर से 2 दिवसीय सेमीनार आयोजित

शिमला : लोक कलाओं पर अध्ययन अनुसंधान प्रशिक्षण सेमीनार भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय के सहायतानुदान से चलाई जा रही लोक विरासत शिरगुल देव परंपराएं और लोक त्योहार परियोजना पर शिमला के कालीबाड़ी आडिटोरियम तथा राम मंदिर सूद धर्मशाला शिमला में हिमालयन संस्कृति विकास एवं शोध संस्थान शिमला द्वारा 2 दिवसीय सेमीनार आयोजित किया गया। इस सेमीनार में अध्ययन-अनुसंधान-प्रशिक्षण-प्रचार-प्रसार-मंचीय प्रदर्शन आदि कार्यक्रमों को निष्पादित करवाया गया। समारोह के समापन अवसर पर पद्म श्री विद्या नंद सरैक ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की और अकादमी पुरस्कार से सम्मानित डॉ तुलसी रमण विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित हुए। पद्म श्री सरैक ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोक संस्कृति के ऐसे भव्य आयोजन लोक त्योहार, लोक कलाओं के संरक्षण, संवर्द्धन और प्रोत्साहन की दिशा में मील पत्थर साबित हो सकते हैं अगर समाज का हर व्यक्ति इस लोक परम्परा से जुड़ा रहे। उन्होंने अपने वक्तव्य में युवाओं का आह्वान विलुप्त हो रही सांस्कृतिक धरोहर की ओर करते हुए कहा कि लोक संस्कृति पर्वतीय समाज की आत्मा है। इससे लोक मानस के प्राण जुड़े हैं । हिमालयन संस्कृति विकास एवं शोध संस्थान शिमला हि०प्र० इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहा है । ऐसे प्रयास निरंतर जारी रहने चाहिए तभी लोक संस्कृति जीवित रह पाएगी। परियोजना के अधीन निष्पादित करवाए गए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों पर जानकारी देते हुए हिमालयन संस्कृति विकास एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष गोपाल दिलैक बताया कि संस्था ने इस परियोजना के अन्तर्गत गांवों से शहर तक अनेक चरणों में शिरगुल देव परंपराओं और लोक संस्कृति को समेटने का भरपूर प्रयास किए है। इसी कड़ी में इस शिरगुल देव अधिष्ठत अनेक ग्रामों से लगभग 130 लोक साहित्यकारों, लोक विशेषज्ञों, लोक समीक्षकों, लोक कलाकारों, सूचक व्यक्तियों को दो दिन के सेमीनार के लिए आमंत्रित किया गया। लोक विरासत शिरगुल देव परंपराओं के मद्देनजर पंडवानी लिपि में लिपिबद्ध लोक वेद सांचा का डाक्यूमेंटेशन करवाया गया। चंदवाणी पोथियों के माहिर लोक साहित्यकारों की मान्यता है कि जब भी उनके गांव में किसी की मृत्यु हो जाएं तो सांचा विद्या को ग्यारह दिन तक छूना बिल्कुल वर्जित है। इस कारण चंदवाण ब्राह्मण सेमीनार में भाग नहीं ले पाए। अध्ययन, अनुसंधान, विचार-विमर्श और समूह परिसंवाद के सत्र शिरगुल देव परंपराओं पर डाॅ० तुलसी रमण ने कहा कि शिरगुल शिमला और सिरमौर जिले के अराध्य देव हैं। इस देव परम्परा में लोक वादन कलाओं और मंदिर में मंत्रोच्चार की अद्वितीय जुगलबंदी है। प्रबाद से लेकर शब्द तक बजाई जाने वाली लोक कलाओं को गांव से शहर तक पहुंचाने में संस्थान सराहनीय प्रयास कर रहा है । पद्म श्री विद्या नंद सरैक ने कहा कि शिरगुल हमारे ग्रामांचलों में शिरगुल की अनगिनत लोक परम्पराएं छिपी है जो हमें एकजुट होकर कार्य निष्पादन का संदेश देते हैं । देव परिपाटी में लोक वाद्य यंत्रों की अहम भूमिका है । लोक विरासत के संरक्षण, संवर्द्धन और उन्नयन के लिए ऐसे प्रयास होते रहने चाहिए। प्रथम में शिमला और सिरमौर जिला से आए लगभग दो दर्जन लोक साहित्यकारों, लोक विद्वानों, लोक समीक्षकों ने भाग लिया। इनमें संगीता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, यज्ञदत्त शर्मा ब्रायला, रणबीर सिंह नेरी कोटली, शौकिया राम पालू, जगमोहन मेहता रासू मांदर, डा नंद लाल शर्मा, तपेन्द्र, रणबीर ठाकुर ने शोध-पत्र प्रस्तुत किए जिस पर वाद-संवाद करवाया गया। समारोह के दूसरे सत्र में लोक संस्कृति पर प्रशिक्षण, मंचीय प्रस्तुति और प्रचार-प्रसार नियोजन के तहत लगभग एक सौ से अधिक लोक कलाकारों ने भाग लिया। इसमें भगवती सांस्कृतिक दल शण्ठा चौपाल, चूडेश्वर सांस्कृतिक दल सिरमौर, जैश्वरी सांस्कृतिक दल ठियोग, जय बीजट सांस्कृतिक दल कुपवी शिमला, महासू युवा सांस्कृतिक दल केदी नेरवा ने भाग लिया।