मुख्यमंत्री सुक्खू का तीसरा बजट 17 मार्च को

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शिमला : हिमाचल प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प के साथ मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू 17 मार्च को विधानसभा में वित्तीय वर्ष, 2025-26 के लिए अपना लगातार तीसरा बजट प्रस्तुत करेंगे। बढ़ते राजस्व एवं राजकोषीय घाटे के बीच प्रदेश को कर्ज के मायाजाल से बाहर निकालना उनके सामने सबसे बढ़ी चुनौती होगी। हिमाचल प्रदेश पर इस समय करीब 1 लाख करोड़ के आसपास कर्ज चढ़ चुका है, जिस कारण राज्य की आर्थिकी हिचकोले खा रही है। ऐसे में प्रतिकूल हालात के बीच मुख्यमंत्री पर कर्मचारी-पैंशनरों को डी.ए. व बकाया एरियर देने के साथ आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए दबाव रहेगा। प्रदेश को हरित राज्य बनाने के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पर्यटन, कृषि व बागवानी के साथ रोजगार सृजन पर ध्यान देना भी मुख्यमंत्री की प्राथमिकता रहेगी। बजट में सरकार के ऊपर चुनावी गारंटियों को पूरा करने का दबाव भी रहेगा। वित्तीय वर्ष, 2024-25 का बजट आकार 58,444 करोड़ रुपए था तथा आगामी वित्तीय वर्ष, 2025-26 का बजट आकार 60,000 करोड़ रुपए के आसपास रहने की संभावना है।
विकास के लिए धन जुटाने में करनी होगी मशक्कत
सरकार को विकास कार्य के लिए धनराशि जुटाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। मौजूदा वित्तीय हालात की बात करें तो 31 मार्च, 2025 को समाप्त होने जा रहे वित्तीय वर्ष के बजट में विकास कार्य के लिए 100 रुपए में से 28 रुपए रखे गए थे। इसके अलावा वेतन पर 25 रुपए, पैंशन पर 17 रुपए, ऋण अदायगी पर 9 रुपए व ब्याज अदायगी पर 11 रुपए का प्रावधान किया गया था। ऐसे में आगामी बजट में किस मद के लिए कितनी राशि मिल पाती है, यह देखना महत्वपूर्ण रहेगा। इस स्थिति में प्रदेश की केंद्र प्रायोजित योजनाओं पर ही अधिक निर्भरता रहेगी।
कहां-कहां पर बढ़ रहा सरकार के खर्चे
हिमाचल प्रदेश की आर्थिक तंगी का एक कारण सरकारी कर्मचारियों के वेतन एवं पैंशन पर बढऩे वाले खर्च है। इसमें वेतन पर 13,600 करोड़ रुपए एवं पैंशन पर 10,800 करोड़ रुपए, उपदानों पर 6,358 करोड़ रुपए और सहायता अनुदान पर 3,400 करोड़ रुपए खर्च होने की बात कही गई है।
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम 5,000 करोड़ के घाटे में
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (बोर्ड-निगम) पर इस समय 5,000 करोड़ रुपए घाटे में है। यानी 23 में से 13 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम घाटे में है। इसमें आम आदमी से जुड़े एच.आर.टी.सी. और बिजली बोर्ड जैसे निगम-बोर्ड प्रमुख है।
कर्ज लेने वाले राज्यों में पांचवें स्थान पर
गंभीर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहे हिमाचल प्रदेश पर देनदारियां बढक़र 1 लाख करोड़ रुपए पहुंच गई है। ऐसे में हालात यह बन गए हैं कि सरकार को आज कर्ज चुकाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। इस कारण आज हिमाचल प्रदेश कर्ज लेने वाले राज्यों की श्रेणी में पांचवें स्थान पर पहुंच गया है। सरकार की तरफ से बार-बार लिए जाने वाले कर्ज को लेकर कैग भी आपत्ति जता चुकी है।
हर पैदा होने वाले बच्चे पर 1,03,000 रुपए कर्ज
हिमाचल प्रदेश के वित्तीय हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज हर पैदा होने वाले बच्चे पर 1,03,000 रुपए है। प्रदेश में जब पिछली भाजपा सरकार गठित हुई थी, तो उस समय प्रति व्यक्ति कर्ज 76,630 रुपए था। यानी आने वाले समय में प्रति व्यक्ति कर्ज की राशि और अधिक बढ़ेगी।
16वें वित्तायोग की सिफारिशों पर टिकी निगाहें
वित्तीय संकट के बीच अब प्रदेश सरकार की निगाहें 16वें वित्तायोग की सिफारिशों पर टिकी है, जिस पर 1 अप्रैल, 2026 से अमल होना है। अरविंद पनगढिय़ा की अध्यक्षता वाले 16वें वित्तायोग के समक्ष राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखकर स्थिति स्पष्ट भी की है। सरकार ने इस दौरान 15वें वित्तायोग की तरफ से राजस्व घाटा अनुदान राशि को 10,000 करोड़ रुपए से घटाकर 3,000 करोड़ रुपए करने पर आपत्ति भी जताई है तथा 16वें वित्तायोग में ऐसा नहीं करने का आग्रह किया है।
मुख्यमंत्री ने बजट तैयारियों को दिया अंतिम रुप
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्तीय वर्ष, 2025-26 के बजट की तैयारियों को अंतिम रुप देने के लिए शनिवार को भी वित्त एवं योजना विभाग के अधिकारियों से बैठक की। बजट को प्रस्तुत करने से पहले बैठकों का यह दौर रविवार को भी जारी रहेगा। बजट के अंतिम प्रारुप को मंत्रिमंडल सदस्यों ने सर्कुलेशन के माध्यम से स्वीकृति प्रदान कर दी है।