साउंड एंड लाइट शो के माध्यम से जान सकेंगे शिमला शहर की यात्रा
शिमला : उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने आज बैंटनी कैसल शिमला के लाइट एण्ड साउंड शो का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री एवं अन्य गणमान्य लोगों ने लाइट एंड साउंड शो देखा। उन्होंने कहा कि शिमला शहर में किया गया यह प्रयास अपने आप में अनूठी पहल है, जिसे शिमला के लोगों के साथ पर्यटकों को भी देखना चाहिए। उन्होंने कहा कि बेंटनी कैसल के साथ शिमला शहर का भी अपना एक इतिहास है जो लाइट एंड साउंड शो में दर्शाया गया है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में प्रदेश के अन्य स्थलों को भी पर्यटन को दृष्टि से विकसित किया जायेगा। उन्होंने कहा कि बेंटनी कैसल भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग के पास एक महत्वपूर्ण संपति है जिसका जीर्णोद्धार किया जा चुका है और आने वाले समय में यहां पर अन्य गतिविधियों को भी आरंभ किया जायेगा ताकि पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सके। उन्होंने कहा कि सारी गतिविधियां आरंभ होने से यह स्थल आकर्षक स्थल के रूप में उभरेगा। 30 मिनट तक चलने वाला लाइट एण्ड साउंड शो हिन्दी और अंग्रेजी संस्करणों में तैयार किया गया है, जिसमे बेंटनी कैसल एवं ऐतिहासिक शिमला शहर के विभिन्न पहलुओं की यात्रा का वर्णन किया गया है। लाइट एण्ड साउंड शो डिजिटल कला तकनीक का उपयोग करने वाला पहला प्रोडक्शन है, जो ऐतिहासिक स्थल पर इसकी नींव से ही बैंटनी कैसल के नजरिए से शिमला के इतिहास को चित्रित करता है। यह शो शिमला की स्थापना से लेकर आज तक के बारे में एक नाटकीय प्रदर्शन है। बॉलीवुड अभिनेता अनुपम खेर ने अपनी आवाज इस चित्रण को दी है। शो को देखने के लिए एक साथ 70 लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई है जिसे अंग्रेजी और हिन्दी भाषाओं में आम जनता के लिए प्रदर्शित किया जाएगा। बैंटनी कैंसल का संरक्षण लगभग 29 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है। इससे पूर्व उप मुख्यमंत्री ने बेंटनी कैसल भवन का जायजा लिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
सिरमौर के महाराजा का ग्रीष्मकालीन महल 140 साल से अधिक पुराना बैंटनी कैंसल था जिसका मुख्य भवन दिखावटी टयूडर शैली में निर्मित दो मंजिला संरचना है जिसे आंशिक शैलेट तथा लघु टावरों के साथ एक ढलान वाली छत के द्वारा ढका गया है। इस इमारत को टी0 ई0 जी0 कूपर ने राजा सुरेन्द्र विक्रम प्रकाश की निगरानी में डिजाइन किया था। 1880 ई० में इसका निर्माण शुरू होने से पहले यह जगह कैप्टन ए० गाॅर्डन से सम्बन्धित थी जिसमे सेना के अधिकारी रहते थे।द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सिरमौर के शासकों ने औपनिवेशिक सरकार को इस परिसर का उपयोग सैन्य उद्देश्यों के लिए दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहां धर्मशाला के पास योल में दफनाऐ गये अधिकांश इतालवी कैदियों के संदेशों को भेजने के लिए आॅल इण्डिया रेडियो से सम्बन्धित युद्ध बंदी अनुभाग रखा गया था। आजादी के ठीक बाद लाहौर में स्थित प्रतिष्ठित समाचार पत्र (‘‘द ट्रिब्यून’’) ने चण्ड़ीगढ़ में स्थानांतरित होने तक यहां काम करना शुरू कर दिया। भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व बैंटनी दरभंगा के महाराजा के हाथों में चला गया। 1957-58 ई० में दरभंगा के महाराजा सर कामेश्वर सिंह ने इस सम्पति को पंजाब सरकार को किराये पर दे दिया जिसमें आरम्भ में पंजाब और उसके बाद हिमाचल पुलिस के विभिन्न अनुभाग कई वर्षों तक यहां स्थापित रहे। पुलिस अधिकारियों की मैस भी इस परिसर में स्थापित रही। 1968 ई० में इस परिसर के पुलिस के पास रहते हुए ही प्रमुख स्थानीय व्यापारिक परिवार रामकृष्ण एण्ड सन्ज द्वारा इस सम्पति को खरीदा गया। इस अवसर पर उप मुख्यमंत्री के धर्मपत्नी सिम्मी अग्निहोत्री, सचिव भाषा संस्कृति विभाग राकेश कंवर, निदेशक डॉ पंकज ललित, अतिरिक्त निदेशक छवि नांटा, क्यूरेटर डॉ हरी चौहान सहित, अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।